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आखिर क्यों अपने ही बेटे के फेरे नही देखती मां, पुराने जमाने की इस रिवाज का गहरा है राज

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आखिर क्यों अपने ही बेटे के फेरे नही देखती मां, पुराने जमाने की इस रिवाज का गहरा है राज

क्या आपने कभी सोचा है कि मां अपने बेटे की शादी में क्यों नहीं जाती है? चलिए एक्सपर्ट से जानते हैं इस सवाल का जवाब। हिंदू धर्म में 4 महत्वपूर्ण संस्कार होते हैं, जिसमें से एक शादी है। शादी हिंदू धर्म के सबसे पवित्र रिवाज में से एक है। हिंदू धर्म में शादियों का बेहद खास महत्व होता है। शादी के दौरान कई रीति-रिवाज निभाए जाते हैं, जैसे कन्यादान, सात फेरे और गृह प्रवेश आदि। इन सभी रस्मों बेहद खास महत्व होता है। इन्ही रीति-रिवाजों को पूरा कर शादी सपंन्न मानी जाती है।

आखिर क्यों अपने ही बेटे के फेरे नही देखती मां, पुराने जमाने की इस रिवाज का गहरा है राज

शादियां केवल दो लोगों का ही नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है। इसलिए सात जन्म के इस खास रिश्ते से कई प्रथाएं जुड़ी होती हैं। शादी में घर के सभी सदस्य शामिल होते हैं। लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि बेटे की शादी में मां शामिल नहीं होती है। अर्थात मां अपने बेटे के फेरे नहीं देखती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है? ऐसा करने के पीछे कारण क्या है? क्यों एक मां ही अपने बेटे की शादी में नहीं जाती है? एक मां के लिए अपने बेटे की शादी बेहद खास होती है, लेकिन फिर भी वह इस खास दिन का हिस्सा नहीं बन पाती है।

इस सवाल का जवाब पाने के लिए हमनें जानी मानी एस्ट्रोलॉजर नंदिता पांडे से बात की है। उन्होनें हमें बताया कि यह परंपरा सदियों से नहीं चली आ रही है। इस प्रथा की शुरुआत मुगल शासन के दौरान हुई थी। आइए जानते हैं क्यों मां अपने बेटे की बारात में नहीं जाती है, क्यों वह अपने ही बेटे के फेरे नहीं देखती है?

मुगल काल से चली आ रही है परंपरा

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बता दें कि पहले के समय में मां अपने बेटे की शादी में जाती थी। लेकिन जब भारत में मुगलों का आगमन हुआ इसी के बाद से मां अपने बेटे के फेरे नहीं देखती हैं। मुगल शासन के दौरान जब महिलाएं बारात में जाती थी तो पीछे से कई बार डकैती और चोरी हो जाती थी। जिसके बाद से घर की रखवाली के लिए महिलाओं ने घर पर रहना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही शादी के दिन रात में सभी महिलाएं मिलकर मनोरंजन के लिए गीत गाती थीं।

घर की देखभाल के लिए रूकती थी मां

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बता दें कि बेटे की शादी में मां का शामिल न होने का कारण घर की देखभाल करना होता था। क्योंकि घर के सभी लोग शादी में चले जाते थे। पीछे से घर की देखभाल और मेहमानों की जरूरतों का ध्यान रखने के लिए मां घर पर ही रूक जाती थी।

गृह प्रवेश भी है एक कारण

शादी संपन्न होने के बाद जब दुल्हन सुबह अपने ससुराल पहुंचती है, तो गृह प्रवेश किया जाता है। इस दौरान दुल्हन की पूजा की जाती है और कलश में द्वार पर चावल रखे जाते हैं। इस कलश को दुल्हन सीधे पैर से गिराती है। इसके बाद दुल्हनों के हाथ पर हल्दी या आलता लगाया जाता है। जिसके बाद दीवार पर हाथ के थापे लगाए जाते हैं। इसी रस्म को गृह प्रवेश कहा जाता है। इसी रस्म की तैयारी करने के लिए मां घर पर ही रूक जाती है। (चावल फेंकने की रस्म क्यों होती है?)

पहले दिन में होती थी शादियां

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एक्सपर्ट के अनुसार हिंदू धर्म में पहले दिन के समय में शादियां दिन में होती थी। उदाहरण के लिए माता सीता और श्रीराम जी का विवाह दिन के दौरान ही हुआ था। लेकिन मुगलों के आने के बाद से रात में शादी करने का चलन शुरू हुआ। (मेहंदी की रस्म क्यों की जाती है)

जानें कहां-कहां आज भी प्रचलित है ये प्रथा?

भारत में उत्तराखंड, बिहार और राजस्थान साइड की महिलाएं अपने बेटे के फेरे नहीं देखती हैं। हालांकि, समय के साथ-साथ लोगों की सोच में बदलाव आया है। आजकल मां अपने बेटे की शादी में जाती हैं।